डाॅ.अग्रवाल बताते हैं कि उन्होंने तारीफ करते हुए एक मूलमंत्र पर काफी देर तक चर्चा किया कि जीवन में किसी चीज का नकारात्मक पक्ष देखने की जगह सकारात्मक पक्ष देखना ही उचित है और किसी भी कृत्य,संस्था या व्यक्ति का मूल्यांकन हमेशा समग्रता में ही करना चाहिए।
डाॅ.अग्रवाल बताते हैं कि एक बार मैं उनसे अपनी पीड़ा लेकर मिला और राजनीति में व्याप्त द्वेष, ईष्र्या, निजी विरोध तथा घटिया फर्जी आरोपों की चर्चा की। इस पर उन्होंने बड़े ही शांत भाव से समझाते हुए साईकिल चलाते समय चैपायों के द्वारा दौड़ाने जाने का बहुत व्यवहारिक उदाहरण दिया। कहा कि आप बिना किसी पर ध्यान दिये, बिना किसी से डरे, आलोचना तथा विरोध से निर्विकार रहकर, बिना कोई प्रतिक्रिया दिये अपने सिद्धांतों पर मूक होकर चलते रहिये, समय अपने-आप सबकुछ स्थापित कर देता है। डाॅ.अग्रवाल कहते हैं कि हमनें उसे अपने जीवन का मूलमंत्र बना लिया।
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली को श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने कहा कि देश ने एक सर्वाधिक अध्ययनशील बौद्धिक, पूरी तरह निर्विकार, उत्कृष्ट विधिवेत्ता, मर्मज्ञ तर्कशास्त्री तथा अर्थविशेषज्ञ राजनेता खो दिया। एक वित्त मंत्री के रूप में वे देश को जिन ऊंचाईयों पर ले गये, देशवासी उनके ऋणी रहेंगे। वे एक दृढ़ निश्चयी, सिद्धांतों पर अडिग, समझौता न करने वाले और तात्कालिक हानि-लाभ से दूर रहकर दूरगामी दृष्टि से आर्थिक योजना बनाने वाले अर्थशास्त्री थे।
उन्होंने कहा कि यह राजनीति में उनकी निस्पृहता ही थी कि जब उन्हें लगा कि वे पूरे समर्पण से अपना समय सरकार को नहीं दे सकते तो उन्होंने मंत्री बनने से इन्कार कर दिया और प्रधानमंत्री मोदी जी के कहने पर भी नहीं माने।